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केवल दो महीने के लिए टली है BJP-AAP की जंग, जानें अप्रैल में फिर क्यों होंगे आमने-सामने – इण्डिया टीवी ंप तक

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आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय की दखल के बाद संयुक्त दिल्ली नगर निगम को उसका पहला मेयर मिल गया। बुधवार को हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी उम्मीदवार शैली ओबेरॉय को 150 वोट मिले, तो भाजपा की पराजित उम्मीदवार रेखा गुप्ता को 116 वोट हासिल हो पाए। लेकिन आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच यह जंग अधिकतम दो महीने के लिए ही टली है। नगर निगम के नियमों के अनुसार अगले मेयर पद के लिए अप्रैल माह में दोबारा चुनाव कराना होगा और इस कारण एक बार फिर दोनों प्रमुख दलों में जंग देखने को मिल सकती है।

दिल्ली को नया मेयर अवश्य मिल गया है, लेकिन उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होगा। नई मेयर शैली ओबेरॉय का कार्यकाल अधिकतम दो महीने का होगा। नगर निगम का बजट पहले ही तय किया जा चुका है। निगम के पास लगभग 17 हजार का अनुमानित बजट है, जिसका निर्धारण पहले ही हो चुका है। जी-20 के आयोजन को ध्यान में रखते हुए यदि केंद्र-दिल्ली सरकार निगम को कोई नया बजट देती है, तो उसके निर्धारण के लिए निगम पहल अवश्य कर सकता है।

निगम के नियमों के अनुसार दूसरा मेयर सामान्य वर्ग से चुना जाता है। इस प्रकार अगले मेयर के रूप में महिला या अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति के साथ-साथ किसी भी व्यक्ति को मेयर पद की जिम्मेदारी मिल सकती है। केवल दो महीने बाद होने वाले इस चुनाव के लिए दोनों दलों ने अभी से अपने-अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं।

क्या कर सकती है आप

नगर निगम की कमान आम आदमी पार्टी के हाथों में आ जाने के कारण अब उसके पास दिल्ली का लगभग पूरा प्रशासन आ गया है। अब अरविंद केजरीवाल सरकार अपनी योजनाओं को ज्यादा बेहतर ढंग से लागू कर दिल्ली की जनता के बीच अपनी छवि मजबूत कर सकती है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बार-बार दिल्ली की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था अपने हाथों में लेने की बात करते रहे हैं, जिससे बच्चों को एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था दी जा सके। अब वे यह सफल कोशिश कर मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रिय योजनाओं को ज्यादा जमीनी आधार देने में कामयाब हो सकते हैं।

राजनीतिक दांव पेंच भी होंगे

नगर निगम चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने भाजपा के 15 साल शासन में निगम में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होने के आरोप लगाते रहे हैं। अब निगम का शासन उनके हाथ में आने के बाद उन योजनाओं पर सदन के पटल पर चर्चा कराकर वह भाजपा को सांसत में डालने की कोशिश कर सकती है।

हालांकि, नगर निगम के मामलों के जानकार जगदीश ममगाईं ने अमर उजाला से कहा कि निगम के शासन में प्रमुख रूप से निगम कमिश्नर और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों का वर्चस्व रहता है। पार्षद अपने क्षेत्रों में काम कराने को लेकर प्रमुख होते हैं, लेकिन नीतिगत निर्णयों में अधिकारियों का वर्चस्व रहता है। लिहाजा पूर्व में हुए किसी कार्य के लिए वह भाजपा को दोषी नहीं ठहरा सकती है। आम आदमी पार्टी के पास निगम के सदन में कमिश्नर के कार्यों पर चर्चा कराकर उसे कटघरे में खड़ा करने का विकल्प होगा। लेकिन चूंकि अगले पांच साल उसे सदन चलाना है, वह वरिष्ठ अधिकारियों को नाराज कर निगम की कार्यप्रणाली में बाधा पैदा करने से बचेगी। लिहाजा उसके पास करने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं होंगे।

बड़ी सेंधमारी नहीं

चर्चा थी कि भाजपा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्षदों के बीच सेंधमारी कर अपना मेयर बनवाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन चुनाव परिणाम बताता है कि उसकी यह कोशिश कामयाब नहीं हुई है। हालांकि, उसने एक आम आदमी पार्टी और एक कांग्रेस पार्षद को अपने पाले में वोट कराकर दूसरे दलों को चेतावनी अवश्य दे दी है।

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